जीवनसाथी का सार्वजनिक रूप से अपमान करना क्रूरता, महिला की याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

Payal Mishra
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Delhi High Court दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि पति को सार्वजनिक रूप से परेशान और अपमानित करने का कृत्य अत्यधिक क्रूरता के दायरे में आता है। अदालत ने कहा कि एक पति या पत्नी की छवि को सार्वजनिक रूप से खराब करने के लिए जीवनसाथी द्वारा लगाए गए लापरवाह अपमानजनक और निराधार आरोप क्रूरता के सिवा कुछ नहीं है।

जीवनसाथी का सार्वजनिक रूप से अपमान करना क्रूरता, महिला की याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी


नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि पति को सार्वजनिक रूप से परेशान और अपमानित करने का कृत्य अत्यधिक क्रूरता के दायरे में आता है। अदालत ने कहा कि एक पति या पत्नी की छवि को सार्वजनिक रूप से खराब करने के लिए जीवनसाथी द्वारा लगाए गए लापरवाह, अपमानजनक और निराधार आरोप क्रूरता के सिवा कुछ नहीं है। वैवाहिक संबंध विश्वास पर टिका है और एक जीवनसाथी से इस तरह के अपमानजनक आचरण की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

अदालत ने उक्त टिप्पणी पति को तलाक देने के तीस हजारी के पारिवारिक अदालत के 31 अगस्त 2016 के निर्णय को चुनौती देने वाली महिला की याचिका पर की। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि कोई भी जीवनसाथी केवल अपने साथी से यह अपेक्षा करता है कि वह उनका सम्मान करे, बल्कि यह भी सोचता है कि जरूरत के समय उसकी छवि और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए ढाल के रूप में कार्य करे।

कार्यालय में भी किया अपमान

हालांकि, दुर्भाग्य से यह ऐसा मामला है कि जहां पति को उसकी पत्नी द्वारा सार्वजनिक रूप से परेशान, अपमानित करने के लिए हमला किया जा रहा है। अदालत ने पाया कि महिला ने कार्यालय की बैठकों के दौरान अपने पति पर उसके कर्मचारियों/मेहमानों के सामने बेवफाई का आरोप लगाने की हद पार करने के साथ ही उसके कार्यालय की महिला कर्मियों को भी परेशान किया था।

बच्चे को हथियार के रूप में किया इस्तेमाल

इतना ही नहीं महिला ने बच्चे को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और उसे पति से पूरी तरह अलग कर दिया। अदालत ने माना कि पिता के लिए अपने बच्चे को दूर जाते और पूरी तरह से उसके खिलाफ होते देखने से ज्यादा दर्दनाक कुछ नहीं हो सकता।

अदालत ने कहा कि वैवाहिक जीवन के छह वर्षों की अवधि में हुई ऐसी हरकतों से साबित होता है कि पति क्रूरता और उत्पीड़न का शिकार था। इसके कारण वह कभी-कभी आत्महत्या करने के बारे में भी सोचने को विवश हुआ। उक्त तथ्यों को देखते हुए पारिवारिक अदालत के निर्णय में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

महिला की शादी प्रतिवादी से फरवरी 2000 में हुई थी और उन्हें एक बेटा भी है। प्रतिवादी पति का आरोप है कि उसकी पत्नी उस पर शक करती थी और उस पर अन्य महिलाओं में रुचि होने का आरोप लगाती थी।


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CREDIT: - JAGRAN 

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