मिसाल: ठाकुरजी की पोशाक बुन रहे ‘अल्लाह के बंदे’
ब्रज के लाला के जन्मोत्सव की
तैयारियों में जुटी धर्मनगरी भक्ति के साथ सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश भी दे रही है। यहां अल्लाह के बंदे
(मुस्लिम समाज के लोग) भी श्रद्धा के साथ
जन्माष्टमी के दिन ठाकुरजी के शृंगार में पहनाई जाने वाली पोशाक के निर्माण में जुटे हैं। इन पोशाक
को भारत ही नहीं
विदेशों में भी भेजा जाना है। मुख्य रूप से दिल्ली के इस्कॉन मंदिर में इनका प्रयोग होगा।
धर्मनगरी वृंदावन में आस्था का रंग गहरा है। यहां कदम-कदम पर
प्रिया-प्रियतम की लीलाओं के साथ सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल मिल जाती हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का आयोजन ही
देख लीजिए। एक ओर
हिंदू समाज मंदिरों में भव्य सजावट के लिए जुटा है, तो पर्दे के पीछे योगदान मुस्लिम समाज का भी है।
वृंदावन की कुंज गलियों में पोशाक और मुकुट शृंगार का व्यवसाय फैला
है। इनमें अधिकतर मुस्लिम समाज के पुरुष और महिलाएं दिन-रात एक कर ठाकुरजी के लिए मुकुट, पोशाक और शृंगार का सामान तैयार करते हैं। यह कारीगर जन्माष्टमी के लिए विशेष रूप से
शृंगार का सामान
तैयार कर रहे हैं। जिसकी मांग भारत के प्रमुख मंदिरों के साथ विदेशों में भी है।
गांव-गांव
में तैयार हो रहीं पोशाकें
पोशाक और मुकुट शृंगार के कारोबार से
जुड़े कारीगर शाहिद, इकराम, सत्तार, सलमान, मुरीद, याकूब, मुबीन ने बताया कि पीढ़ियों से उनका परिवार ठाकुरजी के लिए पोशाक और मुकुट शृंगार आदि का निर्माण करता आ रहा है।
इसी से परिवार का
भरण पोषण होता है।
उन्होंने बताया कि उनके यहां तैयार की जा रही पोशाक दिल्ली के पंजाबी बाग
के इस्कान मंदिर के श्रीविग्रह धारण करेंगे। पोशाक और मुकुट व्यापारी कपिल ने कहा कि वृंदावन में बनाई
जाने वाली पोशाकों की
मांग अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया के
भारतीय मूल के लोगों
के अलावा विदेशी भी अधिक करते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी पर ठाकुरजी को पहनाई जाने वाली पोशाक और मुकुट शृंगार की मांग बढ़ने के
साथ आसपास के गांवों
में भी यह कारोबार बढ़ गया है। गांव धौरेरा, तेहरा, सुनरख, राजपुर, अक्रूर, अहिल्यागंज, लक्ष्मीनगर में
दिन रात-दिन एक कर ठाकुरजी की पोशाक, मुकुट और शृंगार
तैयार किया जा रहा है।