मध्य प्रदेश के प्रत्येक नगर निकाय
में रजिस्टर्ड श्रमिक इस वित्तीय सहायता के लिए पात्र हैं. फर्जीवाड़े के कुल 118 मामलों
में 11 मामले जिंदा मजदूरों के थे. कुछ अधिकारियों ने इन श्रमिकों के नाम पर फर्जी
बैंक खाते खोले और खुद को नॉमिनी बनाया. इसके बाद 2 लाख रुपये की सहायता राशि ट्रांसफर
की गई.
भोपाल:
मध्य प्रदेश में 2003 से कामगारों
के लिये मध्य प्रदेश भवन व अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल बना है. राज्य में
90 प्रतिशत से अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जिसमें बड़ी संख्या
निर्माण से जुड़े श्रमिकों का है. इन्हीं श्रमिकों के लिये मंडल काम के दौरान मौत
और दुर्घटना होने पर अंतिम संस्कार के लिए 2 लाख रुपये की आर्थिक मदद मिलती है.
साथ ही रजिस्टर्ड श्रमिक की दुर्घटना में स्थायी या आंशिक अस्थायी चोट लगने पर भी
आर्थिक सहायता मिलती है. लेकिन अब इसे लेकर भी करोड़ों का घोटाला हो गया. जिंदा
मजदूरों को मुर्दा बताया गया, फिर उन्हीं को नॉमिनी बनाकर फर्जी खाते खोले गये.
इनमें 2-2 लाख की सहायता राशि ट्रांसफर हो गई.
मध्य प्रदेश के प्रत्येक नगर निकाय में रजिस्टर्ड श्रमिक इस वित्तीय सहायता
के लिए पात्र हैं. फर्जीवाड़े के कुल 118 मामलों में 11 मामले जिंदा मजदूरों के थे.
कुछ अधिकारियों ने इन श्रमिकों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खोले और खुद को नॉमिनी बनाया.
इसके बाद 2 लाख रुपये की सहायता राशि ट्रांसफर की गई.
कागजों में मुर्दा लेकिन नहीं
मिली मदद
भोपाल के चांडबड़ इलाके की रहने वाली उर्मिला बाई रैकवार का 12 लोगों का परिवार
है. कागजों में उनकी मौत हो चुकी है. पिछले साल जुलाई में जिंदा रहते हुए 'मुर्दा'
करार दिए गए उर्मिला के नाम पर 2 लाख रुपये की सहायता राशि मिल गई. पूछने पर
उर्मिला ने NDTV से कहा, "मैं मरी नहीं हूं, जिंदा हूं. मैं चौका-बर्तन करती
थी. हार्ट अटैक आया तो काम छोड़ा. कागज पर मेरी मौत के बाद भी मेरे बच्चों को पैसे
मिलने चाहिए थे, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला."
न
सहायता राशि मिली और न श्रमिक कार्ड से मदद
चांडबड़ इलाके से 2-3 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले मोहम्मद कमर की भी यही कहानी
है. वो भी कागजों में मृत घोषित किए जा चुके हैं. पिछले साल सरकारी कागज में
मोहम्मद कमर की मौत हुई. 21 जून को उनके नाम पर कागजों में 2 लाख रुपये की अनुग्रह
राशि ट्रांसफर हुई. ये रकम मोहम्मद कमर को मिली ही नहीं."
बेटी की मौत के बाद निकाले गए पैसे
भोपाल के जहांगीराबाद इलाके की निवासी लीलाबाई ने बताया,
"दो साल पहले मेरी बेटी की मौत हो गई. वो एक रजिस्टर्ड श्रमिक थी. उसकी मौत के
बाद किसी ने उसके नाम के 2 लाख रुपये निकाल लिए." वह कहती हैं, "दो साल पहले
मेरी बेटी मुमोबाई की मौत के बाद अचानक नगर निगम के कुछ लोग घर आए और पूछने लगे कि
क्या मैंने योजना से 2 लाख रुपये लिए हैं. हमें किसी से कोई पैसा नहीं मिला है."
देर रात जारी हुआ ई-पेमेंट
ऑर्डर
जांच में पता चला है कि ज्यादातर मामलों में 'E-पेमेंट ऑर्डर' रात 11 बजे के बाद
जारी किए गए. डेथ सर्टिफिकेट की कॉपी भी धुंधली (ब्लर) थीं. किसी भी पहचान
को अपडेटेड आधार (Aadhaar) डिटेल से नहीं जोड़ा गया है. यहां तक कि आईडी भी
मजदूरों की कथित तौर पर मौत से ठीक पहले बनाई गई थी. इससे ऐसा लगता है कि
अधिकारियों ने सिर्फ उन्हीं मजदूरों को टारगेट किया है, जिनकी वेतन डायरी (पेमेंट
को ट्रैक करने वाली डायरी) इनएक्टिव थी.
अब तक
775 करोड़ रुपये किए जारी
बता दें कि वर्कर्स बोर्ड ने ऐसे मौत के मामलों में अब तक 61,200 से अधिक
लाभार्थियों की मदद की है. उन्हें अंतिम संस्कार और अनुग्रह सहायता के लिए 775
करोड़ जारी किए हैं.
दोषियों
को बख्शा नहीं जाएगा- डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला
उधर, इस पूरे मामले में मध्य प्रदेश सरकार ने जांच कराने की बात कही है. डिप्टी
सीएम राजेंद्र शुक्ला ने कहा, "अगर कहीं भी ऐसा फर्जीवाड़ा हुआ है, तो उसकी
जांच कराई जाएगी. जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. हमारी सरकार
में किसी को भी ऐसा काम करने का अधिकार नहीं है. दोषियों को बख्शा नहीं
जाएगा."
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CREDIT: - NDTV